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Thursday, 29 June 2017

भीड़


भीड़ के साथ हाथ लिए कदमताल करना.
भीड़ के साथ सोच का अविकसित होना.
भीड़ के साथ होते हुए इस भय का होना कि
भीड़ से अलग सोचे तो बेदखल कर दिए जाओगे.
भीड़ के साथ होने वाले शोर में अपनी आवाज़ का दब जाना.
भीड़ के साथ में किसी का साथ मिल जाना, छूट जाना, बिछड़ जाना,
भीड़ में फिसलकर कर गिर पड़ना और
भीड़ के साथ ठहाका लगा कर फिर
भीड़ के साथ आगे बढ़ जाना
एसा सिर्फ इसलिए करना क्यूंकि भीड़ के बर्दास्त के बाहर है
भीड़ के साथ उपहास में शरीक न होते हुए क्रुद्ध हो जाना.
भीड़ के साथ होते हुए सामाजिक पशु का आभास होना फिर भी
भीड़ के साथ होते हुए मानवीय भावनाओ का मर जाना
भीड़ के साथ साथ होते हुए
भीड़ के न्यास का पालन करना,
न किया तो भीड़ के अंधे फैसलों का शिकार होना.
भीड़ के साथ होते हुए
भेड़ के सामान एक रास्ते में चलना दूसरा कुछ न सोच पाना
उन्ही सरहदों का पालन करना जो स्वार्थी हाकिम ने तै की हैं.
भीड़ के साथ अपनों और दुश्मनों के बीच की लकीर बिना किसी तर्क के खिच जाना.
सच में, भीड़ के साथ आँख बंद करके चलना कितना सहज होता है.
सच में, लेकिन धिक्कार है एसी भीड़ के साथ जिसमे स्वयं का अस्तित्व मिट जाना.
सच में, भीड़ का साथ न देने पर मुझे नाकारा साबित करने की कोशिश तो हुई
सच में, भीड़ का साथ न देने पर मुझे दबाने की कोशिश तो हुई
सच में, मैं शुक्रिया अदा करता हूँ उन पलों का
जिन्होंने मुझे भीड़ का साथ देने से पीछे हटा लिया.
और उन कुछ साहसिक पलों का जिसमे मैंने भीड़ का न सुनते हुए
स्वयं पर यकीन किया.
वो पल मेरी धरोहर हैं.
मैंने अपनी जरूरतों को कम करके
फिर भी फलक से भी ज्यादा फैलाव वाले विचार रखना
भीड़ के साथ चलने वालों को कभी रास न आएगा
आज जब मैंने भीड़ का साथ न देते हुए जीना सीख लिया
मैंने स्वयं को पहचान लिया.
भीड़ का साथ न देने पर  
मैं आज अपना शुक्रगुजार हूँ.


Saturday, 20 May 2017

अजीब बात है

जब जब मैं थोडा सा डगमगाया और
संभलने के लिए किसी को मद्द के लिए पुकारा
मुझे नकारा साबित किया गया
जब जब मैं अपनी तनहाइयों से तंग आकर
किसी का साथ माँगा मुझे वो साथ न मिला.
जब जब मैंने प्रयास किए अपने को दूसरों को समझाने के,
मुझे कमजोर समझा गया.
पर
आज जब मैं अपने डगमगाने पर खुद संभल गया
मेरे सहारे न जाने कितने लोग सवर गए.
आज जब मैंने खुद कि मद्द करना स्वयं सीख लिया
मेरे से मद्द मांगना उन्ही लोगों कि आदत बन गया.
आज जब मैंने अपनी तनहाइयों से दोस्ती कर ली
मेरे साथ के लिए लोगों को चाहना होने लगी.
अज़ीब बात है,
मंजिल मिलते ही मंज़र बदल जात है.

Tuesday, 25 October 2016

है नहीं

क्यों बैठा व्यर्थ सोचते हुए ?
जिन बातों वर्तमान में अस्तित्व,
है नहीं
जड़ बना लिया,
क्यों तूने अपने मन को?
जैसे उस बुरे समय के आगे ज़िन्दगी,
है नहीं.
क्यों उस बुरे सपने के भंवर में फंसा हुआ तू ?
जिनका जाग जाने के बाद कोई अर्थ,
है नहीं.
क्यों हो जाती है नम आँखे ?
जबकी समय बदल चुका है और वो व्यक्ति अब,
है नहीं.
क्यों बना बैठा भूत का दास तू ?
जब है पूरा भविष्य है तेरे हाथ में,
ठान ले तो कोई कमजोरी तुझमे,
है नहीं.
चट्टानें आती है राहों में,
लेकिन सागर से मिलने से नदी को रोक सकती,
है नहीं.
क्यों बैठा अपने ही मन के बनाये हुए पिंजरे में,
जबकी तू है आज़ाद पंछी सारी दिशायों का मालिक
और कोई सरहद तेरे लिए

है नहीं...

Tuesday, 20 September 2016

वक़्त तू बच्चे जैसा है
कभी हंसाता कभी रुलाता है
 तेरा हाँथ पकड़ना चाहो तो छुड़ा के भागता है
वक्त तू बच्चे जैसा है
वक्त तेरी नादानी भी कुछ अज़ीब है
मंजिल मिलते ही मंज़र बदल जाता है
मेरा वर्त्तमान तुझे पसंद नहीं  कभी,
मेरा भूत मुझे मुझे पसंद नहीं कभी,
तेरी मेरी इसी खींचतान को लेकर 
इसलिए तू मेरे भविष्य को लेकर अठखेलियां करता है
ऐ वक्त तू बच्चे जैसा है.
कभी तो साथ मेरे साथ चला कर

कभी तो पासों का  खेल मेरे खिलाफ न खेल कर

Sunday, 13 March 2016

YOU MAY COME TO ME


When you feel down
When you are alone with your own thoughts
When you tried harder but failed to convince your destiny
When you feel like betrayed by your own thoughts
When you have lost hope and wish for miracle
When you feel tired and wish a hand to hold you up
When you searched all direction for help except one.
When you see in that very direction,
I am standing, you may come to me...

Friday, 4 March 2016

मन से समझौता


आज एक समझौता मैंने कर लिया अपने मन से.
हाँ हाँ समझौता कर लिया मैंने अपने मन से.
पहले मैं उसी से लड़ता था सही गलत को लेकर.
भूत की गलतियों को लेकर.
भविष्य की कल्पनाओं को लेकर.
कभी इच्छाओ को लेकर.
कभी वेदनाओ को लेकर.
अमूमन खींच तान मची रहती थी उसकी और मेरी,
कभी वोह हावी हो जाता था और मैं विषाद में डूब जाता था.
कभी मैं उसे पछाड़ देता था, और घमंड से भर जाता,
और जीता हुआ महसूस करता.
यह जान कर भी अनजान रहता था की वोह मेरा अभिन्न अंग है.
उसके बिना मैं मतिशून्य और वो अस्तित्वहीन हैं.
इसलिए समझौता कर लिया मैंने उससे कि
आज से सही गलत का निर्णय मिल कर करेंगे और आत्म-उत्थान करेंगे
इस समझौते से मन को संतोष हुआ

और मेरा मार्ग प्रशस्त हुआ....  

Saturday, 28 November 2015

कोरे कागज़ पर काले अक्षर मुझे आजाद करते हैं


किसी ने क्या खूब कहा है 
"कोरे कागज़ पर काले अक्षर मुझे आजाद करते हैं"
अपने परिवेश को अपने आप में खोजने की आजादी
विचार जितनी जल्दी आता है
सचमुच उतनी ही तेज़ उसकी आज़ादी.
सच में कोरा कागज़ उकसाता है
उन दीवारों को लांघने के लिए,
दीवारें जो हैं भ्रम की ऊचाई लिए.
सचमुच कोरा कागज़ पर काले अक्षर मुझे आजाद करते हैं
लव्ज़ मेरे कोरे कागज़ पर
जैसे तारे टिमटिमाते हैं अनंत गगन पर
इनमें है लहरों की तीव्रता
इनमें है सागर की गहरायी
इनमें है ओस की बूंदों की सौम्यता
इनमें है भविष्य की कल्पना
इनमें है अतीत की यादें
इनमें है इरादों की दृढ़ता
इनमें है साहस
इनमें है प्रेम
जो जबां बयाँ नहीं कर पाती है
कोरे कागज़ पर काले अक्षर वह सब बयाँ करते हैं
कोरे कागज़ पर काले अक्षर मुझे आजाद करते हैं