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Tuesday, 20 September 2016

वक़्त तू बच्चे जैसा है
कभी हंसाता कभी रुलाता है
 तेरा हाँथ पकड़ना चाहो तो छुड़ा के भागता है
वक्त तू बच्चे जैसा है
वक्त तेरी नादानी भी कुछ अज़ीब है
मंजिल मिलते ही मंज़र बदल जाता है
मेरा वर्त्तमान तुझे पसंद नहीं  कभी,
मेरा भूत मुझे मुझे पसंद नहीं कभी,
तेरी मेरी इसी खींचतान को लेकर 
इसलिए तू मेरे भविष्य को लेकर अठखेलियां करता है
ऐ वक्त तू बच्चे जैसा है.
कभी तो साथ मेरे साथ चला कर

कभी तो पासों का  खेल मेरे खिलाफ न खेल कर

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