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Saturday, 11 May 2013

माँ


भाग्यविधाता के सामने खड़ा हुआ मैं
अपनी बारी आने के इंतज़ार में
 सोच रहा
अगले जन्म के लिए
क्या वरदान की मांग करूं मैं?
क्या मांग लूं मैं
चिरंजीव होने का
वरदान मैं ?
या मांग लूं
अजातशत्रु होने का
वरदान मैं ?
क्या मांग लूं
सम्पूर्ण पृथ्वी का राज्य मैं?
या मांग लूं मैं
कुबेर से ज्यादा धन?

क्या फिर भी भर पायेगा मेरा मन ?
आई जब मेरी बारी
माँगा मैंने
एक आँचल
एक प्रेम का बंधन
एक गुरु मार्गदर्शक

विधातापुरुष ने दिया वरदान
पहली दफ़ा जब खोलेगा तू आँखे
देखेगा जिसका तू चेहरा
जिसको पुकारेगा तू पहली बार
वोह होगा तेरा वरदान...
पलखें खोली जब मैंने
देखा एक सोम्य चेहरा पहली बार
सहसा एक आंसू बह आया
और रूंधे हुए कंठ से
निकला
“माँ” 

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