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Thursday, 20 August 2015

साथी


मेरे आखों की बरसात रोकने वाले-ओ साथी!
क्या पता था मुझे कि
तुम आंधी के जैसे आओगे
और ग़मों के काले बादलों को
मुझसे दूर कहीं ले जाओगे.
जैसे ही हाथ पकड़ोगे तुम मेरा
क्या पता था मुझे कि
तुम मेरे दुखों की दीवार को भी
एक झटके में ढहा जाओगे.
मेरे सलवटों से भरे
कोरे जीवन के पन्नों में,
रंग भर के-ओ साथी !
क्या पता था मुझे कि
तुम मेरे रंगरेज़ बन जाओगे.
क्या पता था मुझे कि- ओ साथी!
अंधरे मेरे मन के गलियारों में
पलक झपकते ही,
तुम अनेक उज्ज्वल दिए जला जाओगे.
 तुम अपने स्वर से
सूने-सूखे पड़े मेरे मन के आंगन में
राग मल्हार की बरखा कर जाओगे.
और मेरे आश्चर्य की सीमा को भी
एक झटके में लांघ जाओगे.
 मेरा सूनापन दूर करके
मुझे अपना
 ऋणी बनाने वाले-ओ साथी!
क्या तुम दुर्गम जीवन पथ में
मेरे हमराही भी बन जाओगे ?
क्या तुम- ओ साथी!
अधूरे पड़े मेरे जीवन
अपने साथ से पूरा करने का साहस दिखा पाओगे?
क्या तुम मेरा प्रेम निवेदन स्वीकार कर पाओगे ?
जावाब का इंतज़ार रहेगा मुझे...







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