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Monday, 9 November 2015

एक कविता तुम्हारे लिए


देखता हूँ जब तुम्हे 
विचारों की श्रृंखला अनायास ही बन आती है
एक विचित्र सा आभास होता है
जैसे
सागर की लहरे आती है
जाती हैं
और गीला करती हैं
तट की मिट्टी को  
पल भर के लिए ही सही.
और निहारता हूँ तुम्हे
लगती हो जैसे
साँझ का सूरज
लिए लालिमा चेहरे पर
लेकिन हो जाती हो ओझल
अगले ही पल
और उकेर लेता हूँ 
तुम्हारी छवि अपने ह्रदय पर... 

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