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Monday, 29 April 2013

आईना और मैं

आईना और मैं

आईना भी चकित,
देखता रह गया 
की जिसकी 
आखों मैं थे 
कल रात आंसू
आज फिर
मुस्कुरा रहा
आईना भी चकित,
देखता रह गया 
की जिसके 
चेहरे पर थे 
विषाद के बादल
आज उस चेहरे पर
खिली धूप
जेसे फिर
 झूम आया बसंत
आईना भी चकित,
देखता रह गया
कि जो कलतक था
अपनों के दिए 
दर्द से कराहता हुआ
आज फिर उमंग से 
भर उठा
एसा क्या हुआ 
एक रात में
जिससे 
आईना भी  चकित 
देखता रह गया
धोखा खा बैठा और 
बोल बैठा 
यह वह नहीं है चेहरा 
जिसे मैंने कल रात देखा 


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