Pages

Tuesday 25 October 2016

है नहीं

क्यों बैठा व्यर्थ सोचते हुए ?
जिन बातों वर्तमान में अस्तित्व,
है नहीं
जड़ बना लिया,
क्यों तूने अपने मन को?
जैसे उस बुरे समय के आगे ज़िन्दगी,
है नहीं.
क्यों उस बुरे सपने के भंवर में फंसा हुआ तू ?
जिनका जाग जाने के बाद कोई अर्थ,
है नहीं.
क्यों हो जाती है नम आँखे ?
जबकी समय बदल चुका है और वो व्यक्ति अब,
है नहीं.
क्यों बना बैठा भूत का दास तू ?
जब है पूरा भविष्य है तेरे हाथ में,
ठान ले तो कोई कमजोरी तुझमे,
है नहीं.
चट्टानें आती है राहों में,
लेकिन सागर से मिलने से नदी को रोक सकती,
है नहीं.
क्यों बैठा अपने ही मन के बनाये हुए पिंजरे में,
जबकी तू है आज़ाद पंछी सारी दिशायों का मालिक
और कोई सरहद तेरे लिए

है नहीं...