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Tuesday 25 October 2016

है नहीं

क्यों बैठा व्यर्थ सोचते हुए ?
जिन बातों वर्तमान में अस्तित्व,
है नहीं
जड़ बना लिया,
क्यों तूने अपने मन को?
जैसे उस बुरे समय के आगे ज़िन्दगी,
है नहीं.
क्यों उस बुरे सपने के भंवर में फंसा हुआ तू ?
जिनका जाग जाने के बाद कोई अर्थ,
है नहीं.
क्यों हो जाती है नम आँखे ?
जबकी समय बदल चुका है और वो व्यक्ति अब,
है नहीं.
क्यों बना बैठा भूत का दास तू ?
जब है पूरा भविष्य है तेरे हाथ में,
ठान ले तो कोई कमजोरी तुझमे,
है नहीं.
चट्टानें आती है राहों में,
लेकिन सागर से मिलने से नदी को रोक सकती,
है नहीं.
क्यों बैठा अपने ही मन के बनाये हुए पिंजरे में,
जबकी तू है आज़ाद पंछी सारी दिशायों का मालिक
और कोई सरहद तेरे लिए

है नहीं...

Tuesday 20 September 2016

वक़्त तू बच्चे जैसा है
कभी हंसाता कभी रुलाता है
 तेरा हाँथ पकड़ना चाहो तो छुड़ा के भागता है
वक्त तू बच्चे जैसा है
वक्त तेरी नादानी भी कुछ अज़ीब है
मंजिल मिलते ही मंज़र बदल जाता है
मेरा वर्त्तमान तुझे पसंद नहीं  कभी,
मेरा भूत मुझे मुझे पसंद नहीं कभी,
तेरी मेरी इसी खींचतान को लेकर 
इसलिए तू मेरे भविष्य को लेकर अठखेलियां करता है
ऐ वक्त तू बच्चे जैसा है.
कभी तो साथ मेरे साथ चला कर

कभी तो पासों का  खेल मेरे खिलाफ न खेल कर

Sunday 13 March 2016

YOU MAY COME TO ME


When you feel down
When you are alone with your own thoughts
When you tried harder but failed to convince your destiny
When you feel like betrayed by your own thoughts
When you have lost hope and wish for miracle
When you feel tired and wish a hand to hold you up
When you searched all direction for help except one.
When you see in that very direction,
I am standing, you may come to me...

Friday 4 March 2016

मन से समझौता


आज एक समझौता मैंने कर लिया अपने मन से.
हाँ हाँ समझौता कर लिया मैंने अपने मन से.
पहले मैं उसी से लड़ता था सही गलत को लेकर.
भूत की गलतियों को लेकर.
भविष्य की कल्पनाओं को लेकर.
कभी इच्छाओ को लेकर.
कभी वेदनाओ को लेकर.
अमूमन खींच तान मची रहती थी उसकी और मेरी,
कभी वोह हावी हो जाता था और मैं विषाद में डूब जाता था.
कभी मैं उसे पछाड़ देता था, और घमंड से भर जाता,
और जीता हुआ महसूस करता.
यह जान कर भी अनजान रहता था की वोह मेरा अभिन्न अंग है.
उसके बिना मैं मतिशून्य और वो अस्तित्वहीन हैं.
इसलिए समझौता कर लिया मैंने उससे कि
आज से सही गलत का निर्णय मिल कर करेंगे और आत्म-उत्थान करेंगे
इस समझौते से मन को संतोष हुआ

और मेरा मार्ग प्रशस्त हुआ....