आज एक समझौता मैंने कर लिया अपने मन से.
हाँ हाँ समझौता कर लिया मैंने अपने मन से.
पहले मैं उसी से लड़ता था सही गलत को लेकर.
भूत की गलतियों को लेकर.
भविष्य की कल्पनाओं को लेकर.
कभी इच्छाओ को लेकर.
कभी वेदनाओ को लेकर.
अमूमन खींच तान मची रहती थी उसकी और मेरी,
कभी वोह हावी हो जाता था और मैं विषाद में डूब जाता
था.
कभी मैं उसे पछाड़ देता था, और घमंड से भर जाता,
और जीता हुआ महसूस करता.
यह जान कर भी अनजान रहता था की वोह मेरा अभिन्न
अंग है.
उसके बिना मैं मतिशून्य और वो अस्तित्वहीन हैं.
इसलिए समझौता कर लिया मैंने उससे कि
आज से सही गलत का निर्णय मिल कर करेंगे और आत्म-उत्थान
करेंगे
इस समझौते से मन को संतोष हुआ
और मेरा मार्ग प्रशस्त हुआ....
Badhiya...
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