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Saturday 20 May 2017

अजीब बात है

जब जब मैं थोडा सा डगमगाया और
संभलने के लिए किसी को मद्द के लिए पुकारा
मुझे नकारा साबित किया गया
जब जब मैं अपनी तनहाइयों से तंग आकर
किसी का साथ माँगा मुझे वो साथ न मिला.
जब जब मैंने प्रयास किए अपने को दूसरों को समझाने के,
मुझे कमजोर समझा गया.
पर
आज जब मैं अपने डगमगाने पर खुद संभल गया
मेरे सहारे न जाने कितने लोग सवर गए.
आज जब मैंने खुद कि मद्द करना स्वयं सीख लिया
मेरे से मद्द मांगना उन्ही लोगों कि आदत बन गया.
आज जब मैंने अपनी तनहाइयों से दोस्ती कर ली
मेरे साथ के लिए लोगों को चाहना होने लगी.
अज़ीब बात है,
मंजिल मिलते ही मंज़र बदल जात है.