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Saturday 28 November 2015

कोरे कागज़ पर काले अक्षर मुझे आजाद करते हैं


किसी ने क्या खूब कहा है 
"कोरे कागज़ पर काले अक्षर मुझे आजाद करते हैं"
अपने परिवेश को अपने आप में खोजने की आजादी
विचार जितनी जल्दी आता है
सचमुच उतनी ही तेज़ उसकी आज़ादी.
सच में कोरा कागज़ उकसाता है
उन दीवारों को लांघने के लिए,
दीवारें जो हैं भ्रम की ऊचाई लिए.
सचमुच कोरा कागज़ पर काले अक्षर मुझे आजाद करते हैं
लव्ज़ मेरे कोरे कागज़ पर
जैसे तारे टिमटिमाते हैं अनंत गगन पर
इनमें है लहरों की तीव्रता
इनमें है सागर की गहरायी
इनमें है ओस की बूंदों की सौम्यता
इनमें है भविष्य की कल्पना
इनमें है अतीत की यादें
इनमें है इरादों की दृढ़ता
इनमें है साहस
इनमें है प्रेम
जो जबां बयाँ नहीं कर पाती है
कोरे कागज़ पर काले अक्षर वह सब बयाँ करते हैं
कोरे कागज़ पर काले अक्षर मुझे आजाद करते हैं

Thursday 19 November 2015

अभाव


अतीत को अपने मन के जरोखों से देखता हूँ
अतीत जो यादों के सूत्र में पूरा बचपन-लड़कपन
प्रतीत होता है ये कल की ही तो बात है
प्रतीक हैं यह अल्फाज़ मेरे
अतीत की उन घटनाओ की
अतीत जिसमें कई थे
अभाव.
अभाव जो झकझोरते आयें है मुझे वर्षो से
अभाव हैं, लेकिन चाहता था की तुम आज मुझे देख पाते
अभाव हैं, लेकिन सूत्र तो टूटना नहीं चाहिए था
आभाव है मुझे उस महीन धागे के टूटने का,लेकिन
अभाव होते हुए भी स्वाभाव में होने का भाव है मुझे.

अभाव हैं मुझे लेकिन आशा है तुम फिर आओगे-.

Monday 9 November 2015

एक कविता तुम्हारे लिए


देखता हूँ जब तुम्हे 
विचारों की श्रृंखला अनायास ही बन आती है
एक विचित्र सा आभास होता है
जैसे
सागर की लहरे आती है
जाती हैं
और गीला करती हैं
तट की मिट्टी को  
पल भर के लिए ही सही.
और निहारता हूँ तुम्हे
लगती हो जैसे
साँझ का सूरज
लिए लालिमा चेहरे पर
लेकिन हो जाती हो ओझल
अगले ही पल
और उकेर लेता हूँ 
तुम्हारी छवि अपने ह्रदय पर...